कोहिनूर हीरा अनुक्रम उद्गम व आरम्भिक इतिहास सम्राटों के रत्न हीरा भारत के बाहर निकला महान प्रदर्शनी मुकुट/किरीटों की शोभा प्रचलित इतिहास कोहिनूर के दावों की राजनीति प्रचलित मीडिया में कोहिनूर गोलकुंडा के अन्य कुछ हीरे इन्हें भी देखें सन्दर्भ स्रोत बाहरी कड़ियाँ दिक्चालन सूचीKoh-i-noor, a Mountain of LightThe Koh-i-noor DiamondLARGE AND FAMOUS DIAMONDSPM debated diamond's ownershipIndian MPs demand Kohinoor's returnTaliban demand gem from UK crown jewelsBeveridge's Discussion of "great Diamond" (Koh-I-Noor ?)Tavernier's discussion on the Diamond in Appendix Iकभी भारत की शान था कोहनूरअल्ट्रा टेक समटाइम्स बुलेटिन – रीकटिंग द कोहिनूर – जॉन हैटल्बर्ग मैन ऑफ मैनी टैलेंट्सद वर्ल्ड ऑफ फेमस डायमंड्सहिस्ट्री ऑफ द कोहिनूरविशेष: भारत के 10 कीमती हीरों की कहानी, जो हैं विदेशी तिजोरियों में कैद

हीराभारत की धरोहरमूल्यवान पत्थर


हीराभारतगोलकुंडाखानमुगलबेंजामिन डिजराएलीमहारानी विक्टोरिया१८७७संस्कृतस्यमंतक मणिहिन्दूकृष्णजाम्बवंतजामवंती३२०० ई.पू.गोलकुंडाआंध्र प्रदेश१७३०ब्राजीलदक्षिण भारतीयआंध्र प्रदेशगुंटूर जिलादिल्ली सल्तनतखिलजी वंश१३२०गियासुद्दीन तुगलककाकातीय वंशवारंगलदिल्ली सल्तनतमुगलबाबर१५२६बाबरबाबरनामा१२९४मालवाअलाउद्दीन खिलजीग्वालियरकछवाहा शासकोंतोमर राजाओंविक्रमादित्यसिकंदर लोधीमेवाडचित्तौड़शेरशाह सूरीजलाल खानअकबरशाहजहांऔरंगज़ेबऔरंगज़ेबआगरा के किले१७३९नादिर शाहफारस१७४७अफगानिस्तानअहमद शाह अब्दाली१८३०शूजा शाहपंजाबमहाराजा रंजीत सिंहपंजाब१८३९पुरीउड़ीसाजगन्नाथ, मंदिर२९ मार्च१८४९लाहौर के किलेलाहौर संधिगवर्नर जनरललॉर्ड डल्हौज़ी१८५१दलीप सिंहमहारानी विक्टोरियालंदनहाइड पार्क१८५२महारानी अलेक्जेंड्रियामहारानी मैरी१९३६महारानी एलिज़ाबेथ२००२ब्रिटेनमहाभारतगोलकुण्‍डाज़ुल्फीकार अली भुट्टोजिम कैलेघनभारतईरान

















कोह-इ-नूर

कोहिनूर की कांच प्रति

भार
१०५.६० कैरेट (२१.६ ग्राम)
वर्ण
महान श्वेत
मूल देश
भारत
उद्गम खान
गोलकुंडा
मूल स्वामी
see early history
वर्तमान स्वामी
एलिजाबेथ द्वितीय


Glass replica of the Koh-I-Noor as it appeared in its original form, turned upside down


कोहिनूर (फ़ारसी: कूह-ए-नूर) एक १०५ कैरेट (२१.६ ग्राम) का हीरा है जो किसी समय विश्व का सबसे बड़ा ज्ञात हीरा रह चुका है। कहा जाता है कि यह हीरा भारत की गोलकुंडा की खान से निकाला गया था। 'कोहिनूर' का अर्थ है- आभा या रोशनी का पर्वत। यह कई मुगल व फारसी शासकों से होता हुआ, अन्ततः ब्रिटिश शासन के अधिकार में लिया गया, व उनके खजाने में शामिल हो गया, जब ब्रिटिश प्रधान मंत्री, बेंजामिन डिजराएली ने महारानी विक्टोरिया को १८७७ में भारत की सम्राज्ञी घोषित किया।


अन्य कई प्रसिद्ध जवाहरातों की भांति ही, कोहिनूर की भी अपनी कथाएं रही हैं। इससे जुड़ी मान्यता के अनुसार, यह पुरुष स्वामियों का दुर्भाग्य व मृत्यु का कारण बना, व स्त्री स्वामिनियों के लिये सौभाग्य लेकर आया। अन्य मान्यता के अनुसार, कोहिनूर का स्वामी संसार पर राज्य करने वाला बना।




अनुक्रम





  • 1 उद्गम व आरम्भिक इतिहास


  • 2 सम्राटों के रत्न


  • 3 हीरा भारत के बाहर निकला


  • 4 महान प्रदर्शनी


  • 5 मुकुट/किरीटों की शोभा


  • 6 प्रचलित इतिहास


  • 7 कोहिनूर के दावों की राजनीति

    • 7.1 भारत वापसी प्रयास



  • 8 प्रचलित मीडिया में कोहिनूर


  • 9 गोलकुंडा के अन्य कुछ हीरे


  • 10 इन्हें भी देखें


  • 11 सन्दर्भ


  • 12 स्रोत


  • 13 बाहरी कड़ियाँ




उद्गम व आरम्भिक इतिहास


इसका उद्गम स्पष्ट नहीं है। दक्षिण भारत में, हीरों से जुड़ी कई कहानियां रहीं हैं, परन्तु कौन सी इसकी है, कहना मुश्किल है।


कई स्रोतों के अनुसार, कोहिनूर हीरा, लगभग ५००० वर्ष पहले, मिला था और यह प्राचीन संस्कृत इतिहास में लिखे अनुसार स्यमंतक मणि नाम से प्रसिद्ध रहा था। हिन्दू कथाओं के अनुसार[1], भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं यह मणि, जाम्बवंत से ली थी, जिसकी पुत्री जामवंती ने बाद में श्री कृष्ण से विवाह भी किया था। जब जाम्वंत सो रहे थे, तब श्रीकृष्ण ने यह मणि चुरा ली थी। एक अन्य कथा अनुसार, यह हीरा नदी की तली में मिला था, लगभग ३२०० ई.पू.[2]


ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार, यह गोलकुंडा की खान से निकला था, जो आंध्र प्रदेश में, विश्व की सवसे प्राचीन खानों में से एक हैं। सन १७३० तक यह विश्व का एकमात्र हीरा उत्पादक क्षेत्र ज्ञात था। इसके बाद ब्राजील में हीरों की खोज हुई। शब्द गोलकुण्डा हीरा, अत्यधिक श्वेत वर्ण, स्पष्टता व उच्च कोटि की पारदर्शिता हे लिये प्रयोग की जाती रही है। यह अत्यधिक दुर्लभ, अतः कीमती होते हैं।


इस हीरे के बारे में, दक्षिण भारतीय कथा, कुछ पुख्ता लगती है। यह सम्भव है, कि हीरा, आंध्र प्रदेश की कोल्लर खान, जो वर्तमान में गुंटूर जिला में है, वहां निकला था[3]। दिल्ली सल्तनत में खिलजी वंश का अंत १३२० में होने के बाद गियासुद्दीन तुगलक ने गद्दी संभाली थी। उसने अपने पुत्र उलुघ खान को १३२३ में काकातीय वंश के राजा प्रतापरुद्र को हराने भेजा था। इस हमले को कड़ी टक्कर मिली, परन्तु उलूघ खान एक बड़ी सेना के साथ फिर लौटा। इसके लिये अनपेक्षित राजा, वारंगल के युद्ध में हार गया। तब वारंगल की लूट-पाट, तोड़-फोड़ व हत्या-काण्ड महीनों चली। सोने-चांदी व हाथी-दांत की बहुतायत मिली, जो कि हाथियों, घोड़ों व ऊंटों पर दिल्ली ले जाया गया। कोहिनूर हीरा भी उस लूट का भाग था। यहीं से, यह हीरा दिल्ली सल्तनत के उत्तराधिकारियों के हाथों से मुगल सम्राट बाबर के हाथ १५२६ में लगा।


इस हीरे की प्रथम दृष्टया पक्की टिप्पणी यहीं सन १५२६ से मिलती है। बाबर ने अपने बाबरनामा में लिखा है, कि यह हीरा १२९४ में मालवा के एक (अनामी) राजा का था। बाबर ने इसका मूल्य यह आंका, कि पूरे संसार को दो दिनों तक पेट भर सके, इतना महंगा। बाबरनामा में दिया है, कि किस प्रकार मालवा के राजा को जबरदस्ती यह विरासत अलाउद्दीन खिलजी को देने पर मजबूर किया गया। उसके बाद यह दिल्ली सल्तनत के उत्तराधिकारियों द्वारा आगे बढ़ाया गया और अन्ततः १५२६ में, बाबर की जीत पर उसे प्राप्त हुआ। हालांकि बाबरनामा १५२६-३० में लिखा गया था, परन्तु इसके स्रोत ज्ञात नहीं हैं। उसने इस हीरे को सर्वदा इसके वर्तमान नाम से नहीं पुकारा है। बल्कि एक विवाद[1] के बाद यह निष्कर्ष निकला कि बाबर का हीरा ही बाद में कोहिनूर कहलाया।


बाबर एवं हुमायुं, दोनों ने ही अपनी आत्मकथाओं में, बाबर के हीरे के उद्गम के बारे में लिखा है। यह हीरा पहले ग्वालियर के कछवाहा शासकों के पास था, जिनसे यह तोमर राजाओं के पास पहुंचा। अंतिम तोमर विक्रमादित्य को सिकंदर लोधी ने हराया, व अपने अधीन किया, तथा अपने साथ दिल्ली में ही बंदी बना कर रखा। लोधी की मुगलों से हार के बाद, मुगलों ने उसकी सम्पत्ति लूटी, किन्तु राजकुमार हुमायुं ने मध्यस्थता करके उसकी सम्पत्ति वापस दिलवा दी, बल्कि उसे छुड़वा कर, मेवाड, चित्तौड़ में पनाह लेने दिया। हुमायुं की इस भलाई के बदले विक्रमादित्य ने अपना एक बहुमूल्य हीरा, जो शायद कोहिनूर ही था, हुमायुं को साभार दे दिया। परन्तु हुमायुं का जीवन अति दुर्भाग्यपूर्ण रहा। वह शेरशाह सूरी से हार गया। सूरी भी एक तोप के गोले से जल कर मर गया। उसका पुत्र व उत्तराधिकारी जलाल खान अपने साले द्वारा हत्या को प्राप्त हुआ। उस साले को भी उसके एक मंत्री ने तख्तापलट कर हटा दिया। वह मंत्री भी एक युद्ध को जीतते जीतते आंख में चोट लग जाने के कारण हार गया, व स्ल्तनत खो बैठा। हुमायुं के पुत्र अकबर ने यह रत्न कभी अपने पास नहीं रखा, जो कि बाद में सीधे शाहजहां के खजाने में ही पहुंचा। शाहजहां भी अपने बेटे औरंगज़ेब द्वारा तख्तापलट कर बंदी बनाया गया, जिसने अपने अन्य तीन भाइयों की हत्या भी की थी।




कोहिनूर की भिन्न कोणों से टैवर्नियर की अभिकल्पना



सम्राटों के रत्न


शाहजहां ने कोहिनूर को अपने प्रसिद्ध मयूर-सिंहासन (तख्ते-ताउस) में जड़वाया। उसके पुत्र औरंगज़ेब ने अपने पिता को कैद करके आगरा के किले में रखा। यह भी कथा है, कि उसने कोहिनूर को खिड़की के पास इस तरह रखा, कि उसके अंदर, शाहजहां को उसमें ताजमहल का प्रतिबिम्ब दिखायी दे। कोहिनूरमुगलो के पास १७३९ में हुए ईरानी शासक नादिर शाह के आक्रमण तक ही रहा। उसने आगरा व दिल्ली में भयंकर लूटपाट की। वह मयूर सिंहासन सहित कोहिनूर व अगाध सम्पत्ति फारस लूट कर ले गया। इस हीरे को प्राप्त करने पर ही, नादिर शाह के मुख से अचानक निकल पड़ा: कोह-इ-नूर, जिससे इसको अपना वर्तमान नाम मिला। १७३९ से पूर्व, इस नाम का कोई भी सन्दर्भ ज्ञात नहीं है।


कोहिनूर का मूल्यांकन, नादिर शाह की एक कथा से मिलता है। उसकी रानी ने कहा था, कि यदि कोई शक्तिशाली मानव, पाँच पत्थरों को चारों दिशाओं, व ऊपर की ओर, पूरी शक्ति सहित फेंके, तो उनके बीच का खाली स्थान, यदि सुवर्ण व रत्नों मात्र से ही भरा जाये, उनके बराबर इसकी कीमत होगी।


सन १७४७ में, नादिर शाह की हत्या के बाद, यह अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली के हाथों में पहुंचा। १८३० में, शूजा शाह, अफगानिस्तान का तत्कालीन पदच्युत शासक किसी तरह कोहिनूर के साथ, बच निकला; व पंजाब पहुंचा, व वहां के महाराजा रंजीत सिंह को यह हीरा भेंट किया। इसके बदलें स्वरूप, रंजीत सिंह ने ईस्ट इंडिया कम्पनी को, अपनी टुकड़ियां अफगानिस्तान भेज कर, अफगान गद्दी जीत कर, शाह शूजा को वापस दिलाने के लिये तैयार कर लिया था।



हीरा भारत के बाहर निकला


रंजीत सिंह, ने स्वयं को पंजाब का महाराजा घोषित किया था। १८३९ में, अपनी मृत्यु शय्या पर उसने अपनी वसीयत में, कोहिनूर को पुरी, उड़ीसा प्रसिद्ध श्री जगन्नाथ, मंदिर को दान देने को लिखा था। किन्तु उसके अंतिम शब्दों के बारे में विवाद उठा और अन्ततः वह पूरे ना हो सके। २९ मार्च,१८४९ को लाहौर के किले पर ब्रिटिश ध्वज फहराया। इस तरह पंजाब, ब्रिटिश भारत का भाग घोषित हुआ। लाहौर संधि का एक महत्वपूर्ण अंग निम्न अनुसार था:
"कोह-इ-नूर नामक रत्न, जो शाह-शूजा-उल-मुल्क से महाराजा रण्जीत सिंह द्वारा लिया गया था, लाहौर के महाराजा द्वारा इंग्लैण्ड की महारानी को सौंपा जायेगा।"


इस संधि का प्रभारी गवर्नर जनरल थे, लॉर्ड डल्हौज़ी, जिनकी कोहिनूर अर्जन की चाह, इस संधि के मुख्य कारणों में से एक थी। इनके भारत में कार्य, सदा ही विवाद ग्रस्त रहे, व कोहीनूर अर्जन का कृत्य, बहुत से ब्रिटिश टीकाकारों द्वारा, आलोचित किया गया है। हालांकि, कुछ ने यह भी प्रस्ताव दिया, कि हीरे को महारानी को सीधे ही भेंट किया जाना चाहिये था, बजाय छीने जाने के; किन्तु डल्हैज़ी ने इसे युद्ध का मुनाफा समझा, व उसी प्रकार सहेजा।


बाद में, डल्हौज़ी ने, १८५१ में, महाराजा रण्जीत सिंह के उत्तराधिकारी दलीप सिंह द्वारा महारानी विक्टोरिया को भेंट किये जाने के प्रबंध किये। तेरह वर्षीय, दलीप ने इंग्लैंड की यात्रा की, व उन्हें भेंट किया। यह भेंट, किसी रत्न को युद्ध के माल के रूप में स्थानांतरण किये जाने का अंतिम दृष्टांत था।



महान प्रदर्शनी


१८५१ में, लंदन के हाइड पार्क में एक विशाल प्रदर्शनी में, ब्रिटिश जनता को इसे दिखाया गया।



मुकुट/किरीटों की शोभा




कोहिनूर के नरे तराशों की प्रति


रत्न के कटाव में कुछ बदलाव हुए, जिनसे वह और सुंदर प्रतीत होने लगा। १८५२ में, विक्टोरिया के पति प्रिंस अल्बर्ट की उपस्थिति में, हीरे को पुनः तराशा गया, जिससे वह १८६ १/६ कैरेट से घट कर १०५.६०२ कैरेट का हो गया, किन्तु इसकी आभा में कई गुणा बढ़ोत्तरी हुई। अल्बर्ट ने बुद्धिमता का परिचय देते हुए, अच्छी सलाहों के साथ, इस कार्य में अपना अतीव प्रयास लगाया, साथ ही तत्कालीन ८००० पाउण्ड भी, जिससे इस रत्न का भार ४२% घट गया, परन्तु अल्बर्ट फिर भी असन्तुष्ट थे। हीरे को मुकुट में अन्य दो हजार हीरों सहित जड़ा गया।


बाद में, इसे महाराजा की पत्नी के किरीट का मुख्य रत्न जड़ा गया। महारानी अलेक्जेंड्रिया इसे प्रयोग करने वाली प्रथम महारानी थीं। इनके बाद महारानी मैरी थीं। १९३६ में, इसे महारानी एलिज़ाबेथ के किरीट की शोभा बनाया गया। २००२ में, इसे उनके ताबूत के ऊपर सजाया गया।



प्रचलित इतिहास


दुनिया के सबसे दुर्लभ और बेशकीमती हीरे 'कोहिनूर' की ब्रिटेन की महारानी के मुकुट तक पहुँचने की दास्‍तान महाभारत के कुरुक्षेत्र से लेकर गोलकुण्‍डा के ग़रीब मजदूर की कुटिया तक फैली हुई है। ब्रिटेन की महारानी के ताज में जड़ा और दुनिया के अनेक बादशाहों के दिलों को ललचाने की क्षमता रखने वाला अनोखा कोहिनूर दुनिया में आखिर कहाँ से आया, इस बारे में ऐतिहासिक घटनाओं के अलावा बहुत सी कथाएँ और किंवदन्तियाँ भी प्रचलित हैं। यह हीरा अनेक युद्धों, साज़िशों, लालच, रक्तपात और जय-पराजयों का साक्षी रहा है।




कोहिनूर की एक और प्रति


दुनिया के सभी हीरों का राजा है कोहिनूर हीरा। इसकी कहानी भी परी कथाओं से कम रोमांचक नहीं है। कोहिनूर के जन्‍म की प्रमाणित जानकारी न‍हीं है पर कोहिनूर का पहला उल्‍लेख ३००० वर्ष पहले मिला था। इसका नाता श्री कृष्‍ण काल से बताया जाता है। पुराणों के अनुसार स्‍वयंतक मणि ही बाद में कोहिनूर कहलायी। ये मणि सूर्य से कर्ण को फिर अर्जुन और युधिष्ठिर को मिली। फिर अशोक, हर्ष और चन्‍द्रगुप्‍त के हाथ यह मणि लगी। सन् १३०६ में यह मणि सबसे पहले मालवा के महाराजा रामदेव के पास देखी गयी। मालवा के महाराजा को पराजित करके सुल्‍तान अलाउदीन खिलजी ने मणि पर कब्‍जा कर लिया। बाबर से पीढी दर पीढी यह बेमिसाल हीरा अंतिम मुगल बादशाह औरंगजेब को मिला। ’ज्‍वेल्‍स ऑफ बिट्रेन’ का मानना है कि सन् १६५५ के आसपास कोहिनूर का जन्‍म हिन्‍दुस्‍तान के गोलकुण्‍डा जिले की कोहिनूर खान से हुआ। तब हीरे का वजन था 787 कैरेट। इसे बतौर तोहफा खान मालिकों ने शाहजहां को दिया। सन्1739 तक हीरा शाहजहां के पास र‍हा। फिर इसे नादिर शाह के पास र‍हा। इसकी चकाचौधं चमक देखकर ही नादिर शाह ने इसे कोहिनूर नाम दिया। कोहिनूर को रखने वाले आखिरी हिन्‍दुस्‍तानी पंजाब का रणजीत सिंह था। सन् १८४९ में पंजाब की सत्‍ता हथियाने के बाद कोहिनूर अंग्रेजों के हाथ लग गया। फिर सन् १८५० में ईस्‍ट इण्डिया कम्‍पनी ने हीरा महारानी विक्‍टोरिया को भेंट किया। इंग्‍लैण्‍ड पंहुचते-पंहुचते कोहिनूर का वजन केवल १८६ रह गया। महारानी विक्‍टोरिया के जौहरी प्रिंस एलवेट ने कोहिनूर की पुन: कटाई की और पॉलिश करवाई। सन् 1852 से आज तक कोहिनूर को वजन १०५.६ ही रह गया है। सन् १९११ में कोहिनूर महारानी मैरी के सरताज में जड़ा गया। और आज भी उसी ताज में है। इसे लंदन स्थित ‘टावर ऑफ लंदन’ संग्राहलय में नुमाइश के लिये रखा गया है।



कोहिनूर के दावों की राजनीति


इस हीरे की लबी कथा के बाद, कई देश इसपर अपना दावा जताते रहे हैं।
१९७६ में, पाकिस्तान के प्रधान मंत्री ज़ुल्फीकार अली भुट्टो ने ब्रिटिश प्रधान मंत्री जिम कैलेघन को पाकिस्तान को वापस करने का अनुरोध किया, जिसे उन्होंने एक नम्र "नहीं" में उत्तर दिया।.[4] अन्य दावा भारत ने किया था। [5] एवं [[अफ्गानिस्तान की तालीबान शासन ने,[6] व ईरान ने।



भारत वापसी प्रयास




हीरों की आकृतियां


फिलहाल इसे भारत वापस लाने को कोशिशें जारी की गयी हैं। आजादी के फौरन बाद, भारत ने कई बार कोहिनूर पर अपना मालिकाना हक जताया है। महाराजा दिलीप सिंह की बेटी कैथरीन की सन् १९४२ में मृत्‍यु हो गयी थी, जो कोहिनूर के भारतीय दावे के संबध में ठोस दलीलें दे सकती थी।


  • २००७ तक कोहिनूर टॉवर ऑफ लंदन में ही रखा है।


प्रचलित मीडिया में कोहिनूर


अनुवाद निवेदित



गोलकुंडा के अन्य कुछ हीरे


भारत की गोलकुंडा की खानों से कोहिनूर के अलावा भी दुनिया के कई बेशकीमती हीरे निकले। ग्रेट मुगल, ओरलोव, आगरा डायमंड, अहमदाबाद डायमंड, ब्रोलिटी ऑफ इंडिया जैसे न जाने कितने ऐसे हीरे हैं, जो कोहिनूर जितने ही बेशकीमती हैं।



इन्हें भी देखें


  • स्यमंतक मणि


  • दरिया-ए-नूर हीरा (प्रकाश का सागर)


  • नूर-उल-आयन हीरा (आँख की रोशनी)

  • प्रसिद्ध हीरों की सूची


सन्दर्भ




  1. Koh-i-noor, a Mountain of Light


  2. The Koh-i-noor Diamond


  3. LARGE AND FAMOUS DIAMONDS


  4. PM debated diamond's ownership


  5. Indian MPs demand Kohinoor's return


  6. Taliban demand gem from UK crown jewels



स्रोत



  • The Great Diamonds of the World by Edwin Streeter, [1]


  • The Baburnama by Babur, translated into English by Annette Beveridge 1922,

  • Beveridge's Discussion of "great Diamond" (Koh-I-Noor ?)


  • Akbarnama by Abul Fazal, translated into English by Henry Beveridge


  • Travels in India by Jean Baptiste Tavernier, translated into English by Valentine Ball and William Crooke

  • Tavernier's discussion on the Diamond in Appendix I

  • Naming of the Koh-i-Noor and the Origin of Mughal-Cut Diamonds by Anna Malecka The Journal of Gemmology, no. 4. vol. 38.

  • The archives of The Times.


  • http://www.royal.gov.uk/output/page3202.asp Photograph of Koh-I-Noor Diamond


  • Rushby, Kevin (2004). Chasing the mountain of light : across India on the trail of the Koh-i-Noor diamond. London: Robinson. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 184119882X..mw-parser-output cite.citationfont-style:inherit.mw-parser-output qquotes:"""""""'""'".mw-parser-output code.cs1-codecolor:inherit;background:inherit;border:inherit;padding:inherit.mw-parser-output .cs1-lock-free abackground:url("//upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/6/65/Lock-green.svg/9px-Lock-green.svg.png")no-repeat;background-position:right .1em center.mw-parser-output .cs1-lock-limited a,.mw-parser-output .cs1-lock-registration abackground:url("//upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/d/d6/Lock-gray-alt-2.svg/9px-Lock-gray-alt-2.svg.png")no-repeat;background-position:right .1em center.mw-parser-output .cs1-lock-subscription abackground:url("//upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/a/aa/Lock-red-alt-2.svg/9px-Lock-red-alt-2.svg.png")no-repeat;background-position:right .1em center.mw-parser-output .cs1-subscription,.mw-parser-output .cs1-registrationcolor:#555.mw-parser-output .cs1-subscription span,.mw-parser-output .cs1-registration spanborder-bottom:1px dotted;cursor:help.mw-parser-output .cs1-hidden-errordisplay:none;font-size:100%.mw-parser-output .cs1-visible-errorfont-size:100%.mw-parser-output .cs1-subscription,.mw-parser-output .cs1-registration,.mw-parser-output .cs1-formatfont-size:95%.mw-parser-output .cs1-kern-left,.mw-parser-output .cs1-kern-wl-leftpadding-left:0.2em.mw-parser-output .cs1-kern-right,.mw-parser-output .cs1-kern-wl-rightpadding-right:0.2em


बाहरी कड़ियाँ



  • कभी भारत की शान था कोहनूर (पाञ्चजन्य)

  • अल्ट्रा टेक समटाइम्स बुलेटिन – रीकटिंग द कोहिनूर – जॉन हैटल्बर्ग मैन ऑफ मैनी टैलेंट्स

  • द वर्ल्ड ऑफ फेमस डायमंड्स

  • हिस्ट्री ऑफ द कोहिनूर

  • विशेष: भारत के 10 कीमती हीरों की कहानी, जो हैं विदेशी तिजोरियों में कैद


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