बृहत्कथा परिचय इन्हें भी देखें सन्दर्भ दिक्चालन सूची
प्राकृत साहित्यपैशाची साहित्यमहाकाव्य
गुणाढ्यपैशाची भाषाकथासरित्सागरबृहत्कथामंजरीबृहत्कथाश्लोकसंग्रहःसंस्कृतपंचतंत्रहितोपदेशवेतालपंचविंशतिवररुचिकाणभूतिगुणाढ्यक्षेमेन्द्रअनंतदेवस्वप्न-वासवदत्ताप्रतिज्ञायौगंधरायणरत्नावलीहर्षचरितमेघदूतसातवाहनआंध्र-नरपति
बृहत्कथा गुणाढ्य द्वारा पैशाची भाषा में रचित काव्य है। 'वृहत्कथा' का शाब्दिक अर्थ है - 'लम्बी कथा'। इसमें एक लाख श्लोक हैं। इसमें पाण्डववंश के वत्सराज के पुत्र नरवाहनदत्त का चरित (कथा) वर्णित है। इसका मूल रूप प्राप्त नहीं होता किन्तु यह कथासरित्सागर, बृहत्कथामंजरी तथा बृहत्कथाश्लोकसंग्रहः आदि संस्कृत ग्रंथों में रूपान्तरित रूप में विद्यमान है। पंचतंत्र, हितोपदेश, वेतालपंचविंशति आदि कथाएँ सम्भवतः इसी से ली गयी हैं।
परिचय
मूल बृहत्कथा वररुचि ने काणभूति से कही और काणभूति ने गुणाढ्य से। इससे व्यक्ति होता है कि यह कथा वररुचि के मस्तिष्क का आविष्कार है, जो संभवतः उसने संक्षिप्त रूप से संस्कृति में कही थी; क्योंकि उदयन की कथा उसकी जन्मभूमि में किवदन्तियों के रूप में प्रचलित रही होगी। उसी मूल उपाख्यान को क्रमशः काणभूति और गुणाढय ने प्राकृत पैशाची भाषाओं में विस्तावूर्वक लिखा। महाकवि क्षेमेन्द्र ने उसे बृहत्कथा-मंजरी नाम से, संक्षिप्त रूप से, संस्कृत में लिखा। फिर काश्मीरराज अनंतदेव के राज्य-काल में कथा-सरित्सागर की रचना हुई। इस उपाख्यान को भारतीयों ने बहुत आदर दिया और वत्सराज उदयन कई नाटकों और उपाख्यानों में नायक बनाए गए। स्वप्न-वासवदत्ता, प्रतिज्ञायौगंधरायण और रत्नावली में इन्हीं का वर्णन है। हर्षचरित में लिखा है—नागवनविहारशीलं च माया मतंगांगान्निर्गता महासेनसैनिका वत्सपतिं न्ययशिंषु:। मेघदूत ने भी– प्राप्यावंतीनुदयनकथाकोविदग्रामवृद्धान् और प्रद्योतस्य प्रियदुहितरं वत्स-राजोत्र जहे इत्यादि है। इससे इस कथा की सर्वलोकप्रियता समझी जा सकती है।
वररुचि ने इस उपाख्यान—माला को सम्भवतः 350 ई. पूर्व लिखा होगा। फिर भी सातवाहन नामक आंध्र-नरपति के राजपंडित गुणाढय ने इसे बृहत्कथा नाम से ईसा की पहली शताब्दी में लिखा। इस कथा का नायक नरवाहनदत्त इसी उदयन का पुत्र था।
इन्हें भी देखें
- कथासरित्सागर
- कादम्बरी