कोएन्जाइम क्यू-१० अनुक्रम बाहरी कड़ियाँ दिक्चालन सूचीअलसी चेतना यात्रावेज ओमेगा

जीव विज्ञान







अनुक्रम





  • 1 प्रस्तावना


  • 2 कोएन्ज़ाइम क्यू-10 की खोज


  • 3 कोक्यू-10 कहाँ पाया जाता है


  • 4 शरीर में कोक्यू-10 का निर्माण


  • 5 कोक्यू-10 का व्यवसायिक उत्पादन


  • 6 कोक्यू-10 का चयापचय


  • 7 शरीर में कोक्यू-10 की स्थिति का आँकलन


  • 8 शरीर में कोक्यू-10 के कार्य


  • 9 कोक्यू-10 कैसे कार्य करता है


  • 10 क्या कोक्यू-10 शरीर के लिए आवश्यक तत्व है


  • 11 स्टेटिन प्रजाति की दवाइयाँ और उनके कुप्रभाव


  • 12 त्वचा की जीर्णता या झुर्रियाँ


  • 13 हृदय रोग


  • 14 कॉलेस्ट्रोल


  • 15 कैंसर


  • 16 मस्तिष्क


  • 17 बांझपन


  • 18 वृक्क-वात की अन्तिम अवस्था (End Stage Renal Failure)


  • 19 माइटोकोन्ड्रिया


  • 20 मात्रा


  • 21 अंतिम सन्देश

    • 21.1 बाहरी कड़ियाँ





प्रस्तावना



कोएन्ज़ाइम क्यू-10 विटामिन की तरह एक एन्जाइम है जो कोशिकीय ऊर्जा के निर्माण में अति महत्वपूर्ण है। इसे यूबीक्विनोन, मिटोक्विनोन, यूबीडेकारेनोन और कोक्यू-10 भी कहते है। इसे यूबीक्विनोन (यूबी = सर्वत्र) इसलिए कहते हैं कि यह हमारे शरीर की सभी कोशिकाओं में पाया जाता है और संरचना की दृष्टि से यह एक क्विनोन है। कोक्यू-10 वसा में घुलनशील पदार्थ है और अत्यंत शक्तिशाली ऐन्टीऑक्सीड्न्ट और स्वास्थ्यवर्धक है। कुछ अनुसन्धानकर्ता इसे विटामिन-क्यू भी कहते हैं। इसका चिकित्सकीय उपयोग इश्चीमिक हार्ट डिजीज, कन्जेस्टिव हार्ट फैल्यर, उच्च रक्तचाप, डिसएरिदमिया, ऐन्जाइना पेक्टोरिस, माइट्रल वाल्व प्रोलेप्स, डायबिटीज, किडनी फैल्यर, बाँझपन, बैल्स पॉल्सी और पेरीओडोन्टल रोगों में किया जाता है।



कोएन्ज़ाइम क्यू-10 की खोज



विसकोन्सिन विश्वविद्यालय में डॉ॰ फ्रेडरिक एल. क्रेन ने पचासवें दशक में माइटोकोन्ड्रिया इलेक्ट्रोन ट्रान्सपोर्ट श्रंखला (जिसे श्वसन श्रंखला भी कहते हैं) का अध्ययन करने के दौरान कोक्यू-10 की खोज की थी। उन्हें बैल के हृदय से निकाले गये माइटोकोन्ड्रिया में सन्तरे के रंग का एक नया पदार्थ होने का सन्देह हुआ जिसे उन्होंने पृथक किया और पहचानने के लिए मर्क फार्मा के डॉ॰ कार्ल फोकर्स के पास भेजा, जिन्हें कोएन्ज़ाइम क्यू-10 की शोध का पिता कहा जाता है। कार्ल ने उसका नाम कोएन्ज़ाइम क्यू-10 रखा गया क्योंकि उसमें एक क्विनोन नाम का छल्ला था जिससे दस आइसोप्रीन पार्श्व लड़ें जुड़ी हुई थी। इन्हीं दिनों इंगलैन्ड के डॉ॰ आर.ए.मोर्टन और उनके साथियों ने भी कोक्यू-10 को माइटोकोन्ड्रिया से पृथक किया और उसका नाम यूबीक्विनोन रखा क्योंकि यह शरीर की सारी कोशिकाओं में पाया जाता था। इलेक्ट्रोन ट्रान्सपोर्ट चेन में कोक्यू-10 के महत्व को सबसे पहले इंगलैन्ड के डॉ॰ पीटर मिशैल ने पहचाना जिसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार दिया गया। 1976 के बाद 28 देशों के 360 शोधक्ताओं ने कोक्यू-10 पर काफी शोध की है और 5000 से ज्यादा शोधपत्र प्रस्तुत किये हैं। इसका रसायनिक सूत्र 2,3 डाइमिथोक्सी-5-मिथाइल-6-डेकाप्रेनिल1,4-बेन्जोक्विनोन.2 है।



कोक्यू-10 कहाँ पाया जाता है



कोक्यू प्रकृति में सर्वत्र सभी पेड़ पौधों और मानव सहित सभी जीव जन्तुओं में पाया जाता है। मानव और कुछ जीव जन्तुओं में उसके अणु से आइसोप्रीन की दस पार्श्व लड़ियाँ जुड़ी होती हैं, इसलिए इसे कोक्यू-10 कहते हैं।
यह बैल, सूअर व मुर्गे आदि की कलेजी (हृदय, गुर्दे, यकृत आदि) और मछली में प्रचुरता से पाया जाता है। यह शरीर के उन अंगों में ज्यादा पाया जाता है जिनमें ऊर्जा की खपत ज्यादा होती है। यह ब्रोकोली, पालक और सोया के अनरिफाइण्ड तेल (जो उपलब्ध होना मुश्किल है) में भी पाया जाता है।



शरीर में कोक्यू-10 का निर्माण



कोक्यू-10 हमारे शरीर की सारी कोशिकाओं और लाइपोप्रोटीन्स में पाया जाता है। हर कोशिका कोक्यू-10 बनाने में सक्षम होती है। उसके निर्माण की प्रक्रिया बड़ी जटिल है और इसके निर्माण में कई विटामिन्स जैसे विटामिन बी-6, विटामिन बी-12, विटामिन बी-6, फोलिक एसिड, नायसिनेमाइड, पेन्टोथीनिक एसिड और विटामिन-सी तथा कुछ ट्रेस तत्व सहायता करते हैं। क्विनोन छल्ला टायरोसीन नामक अमाइनो अम्ल से लिया जाता है। मिथाइल ग्रुप मीथियोनीन से और आइसोप्रीन पार्श्व लड़ें मेवलोनेट कार्य-पथ (कॉलेस्टेरोल का निर्माण भी इसी मेवेलोनेट कार्य-पथ द्वारा होता है) से ली जाती हैं।



कोक्यू-10 का व्यवसायिक उत्पादन



कोक्यू-10 को ईस्ट या कभी कीटाणुओं को ख़मीर करके बनाया जाता है। इसे अर्धकृत्रिम तरीके से सोलेनेसोल (तम्बाखू का बाईप्रोडक्ट) से फाइटिल पार्श्व लड़ और टाइरोसीन से मुख्य छल्ला लेकर भी बनाया जाता है। 1974 में जापान के वैज्ञानिकों ने कोक्यू-10 के व्यावसायिक उत्पादन की अच्छी तकनीक विकसित कर ली थी और इसका सबसे ज्यादा उत्पादन जापान में ही होता है। हालाँकि चीन, भारत, दक्षिणी कोरिया और इटली भी इसका उत्पान करते हैं। आजकल अमेरिका के पसादेना, टेक्सास में भी इसका उत्पादन होने लगा है।



कोक्यू-10 का चयापचय



हमारे शरीर में 60 ट्रिलियन कोशिकाएँ होती हैं और कोक्यू-10 हमारी सारी कोशिकाओं में पाया जाता है। चूँकि यह रक्त में घुलनशील नहीं है इसलिए यह रक्त-प्रवाह में आवागमन हेतु लाइपोप्रोटीन्स को वाहन के रूप में प्रयोग करता है। इसकी मात्रा उन अंगों में बहुत ज्यादा होती है जहाँ उर्जा की खपत ज्यादा होती है और चयापचय संबंधित क्रियाएँ ज्यादा होती हैं जैसे हृदय, मस्तिष्क, गुर्दा, यकृत और पेशियाँ आदि। इसकी अपघटित या redox अवस्था यूबीक्विनोल की मात्रा अलग-अलग उतकों में अलग-अलग होती है। रक्त प्रवाह में सामान्यतः अपघटित अवस्था यूबीक्विनोल की मात्रा ज्यादा होती है। रक्त में ऑक्सीकृत यूबीक्विनोन और अपघटित अवस्था यूबीक्विनोल का अनुपात शरीर में मुक्त कणों (Free Radicals) के आघात को प्रदर्शित करता है। हाल ही हुई शोधों के अनुसार कुछ रोगों जैसे डायबिटीज, यकृत रोग, हृदय रोगों और कैन्सर में शरीर में कोक्यू-10 कम हो जाता है।



शरीर में कोक्यू-10 की स्थिति का आँकलन



स्वस्थ शरीर में रक्त में कोक्यू-10 की मात्रा 0.5 से 1.0 माइक्रोग्राम / एम.एल. होती है। स्वस्थ शरीर में कोक्यू-10 की कुल मात्रा 1.5-2 ग्राम होती है। कई बार कोक्यू-10 की मात्रा सामान्य होने पर भी हृदय और पेशियों में पर्याप्त कोक्यू-10 नहीं होता है। विभिन्न अंगों में कोक्यू-10 की मात्रा का सही आँकलन बायोप्सी द्वारा ही होता है।



शरीर में कोक्यू-10 के कार्य


कोक्यू-10 का बुनियादी कार्य कोशिकाओं में ऊर्जा का उत्पादन करना है। यह कोशिकाओं में माइटोकोन्ड्रिया की आँतरिक झिल्ली का प्रमुख घटक है। माइटोकोन्ड्रिया कोशिका के पॉवर-हाउस माने जाते हैं और यही विभिन्न कोशिकीय चयापचय क्रियाओं और अनेक तत्वों के उत्पादन हेतु जीवन ऊर्जा ए.टी.पी. (एडीनोसिन ट्राइफोस्फेट ATP) बनाते हैं। कोक्यू-10 विटामिन ई और सी की भाँति एक अत्यंत शक्तिशाली ऐन्टीऑक्सीड्न्ट है जो बाहरी और आँतरिक घातक मुक्त-कणों से हमारे पूरे शरीर तथा कोमल अंगों की रक्षा करते हैं। इनके अलावा भी यह शरीर में कई महत्वपूर्ण कार्य जैसे कोशिका की झिल्लियों की सुरक्षा और कोशिकीय संकेतन प्रणाली में मदद करना आदि करता है।



कोक्यू-10 कैसे कार्य करता है



कोक्यू-10 माइटोकोन्ड्रिया में इलेक्ट्रोन ट्राँसपोर्ट चेन (रेस्पिरेट्री चेन) का महत्वपूर्ण घटक है। माइटोकोन्ड्रिया में वसा अम्लों, शर्करा और प्रोटीन के चयापचय से प्राप्त तत्वों का फोस्फेटीकरण (ऑक्सीडेटिव फोस्फोरिलेशन) कर जीवन ऊर्जा एडीनोसिन ट्राइफोस्फेट या ATP का उत्पादन होता है। कोक्यू-10 इलेक्ट्रोन ट्राँसपोर्ट चेन के लिए प्रयुक्त एन्जाइम तंत्र क्रमशः कॉम्प्लेक्स I, II और III का प्रमुख उप-घटक है। यह कॉम्प्लेक्स I (nicotinamide adenine dinucleotide dehydrogenase) और कॉम्प्लेक्स II (succinate dehydrogenase) से कॉम्प्लेक्स III (ubiquinone-cytochrome c reductase) में अपघटन (reduction) द्वारा इलेक्ट्रोन्स का स्थान परिविर्तन करता है। इस तरह यह कोशिकीय ऊर्जा उत्पादन में अति विशिष्ट भूमिका का निर्वाह करता है।



क्या कोक्यू-10 शरीर के लिए आवश्यक तत्व है



हमें वैसे कोक्यू-10 हमारे शरीर में नियमित बनता है इसलिए यह आवश्यक तत्वों की परिभाषा में नहीं आता है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ शरीर में इसका उत्पादन कम होने लगता है। 40 वर्ष की उम्र तक आते-आते यकृत में कोक्यू-10 का स्तर 95.3%, गुर्दे में 72.63% तथा हृदय में 68.23% रह जाता है। 80 वर्ष की आयु में शरीर में इसकी मात्रा 50% रह जाती है। सामान्य आहार से कोक्यू-10 की बहुत कम मात्रा (5 मि.ग्राम प्रतिदिन) मिल पाती है। यह कलेजी (जानवरों के अंगों का माँस) में ही बहुतायत में मिलता है, जो हम नियमित खाते नहीं हैं। कई बार कुछ रोगों में इसकी आवश्यकता बढ़ जाती है और शरीर में निर्माण उतना नहीं हो पाता। ऐसी अवस्था में हमें कोक्यू-10 के केप्स्यूल लेना आवश्यक हो जाता है।
शरीर में कोक्यू-10 की कमी होने पर हृदय रोग ऐरिद्मिया, ऐथेरोस्क्लिरोसिस, कनजेस्टिव होर्ट फैल्यर, ऐन्जाइना तथा उच्च रक्तचाप और डायबिटीज, मसूड़ों के रोग और आमाशय में फोड़े आदि हो जाते हैं।

कोक्यू-10 एक सुरक्षित स्वास्थ्य-वर्धक है। शोधकर्ताओं नें इसे लम्बे समय तक 30 से 3000 मि.ग्राम प्रति दिन की मात्रा लम्बे समय तक लोगों को दे कर कई परीक्षण किये हैं और इसे पूर्णतः सुरक्षित पाया है। बहुत ही कम लोगों को इसके सेवन से तकलीफ होती है जिनमें मुख्य हैं जी मिचलाना, भूख कम लगना, दस्त या पेट में हल्का सा दर्द होना आदि।



स्टेटिन प्रजाति की दवाइयाँ और उनके कुप्रभाव



कॉलेस्ट्रोल कम करने वाली स्टेटिन प्रजाति की दवाइयाँ (HMG-CoA reductase inhibitors) शरीर में कोक्यू-10 के स्तर को कम करती हैं। स्टेटिन्स कॉलेस्ट्रोल के निर्माण पथ को बाधित करती हैं, ताकि शरीर में कॉलेस्ट्रोल का उत्पादन कम हो। लेकिन कोक्यू-10 के उत्पादन में भी वही मेवलोनेट कार्य-पथ प्रयुक्त होता है इसलिए स्टेटिन्स ले रहे व्यक्ति के शरीर में कोक्यू-10 का उत्पादन भी बाधित होता है। इसलिए स्टेटिन प्रजाति की दवाइयाँ के साथ कोक्यू-10 भी देना ही चाहिये ताकि शरीर में कोक्यू-10 की कमी न हो पाये। कोक्यू-10 के सेवन से इन्सुलिन की आवश्यकता कम होती है। बीटा-ब्लॉकर्स भी शरीर में हो रहे कोक्यू-10 के उत्पादन को थोड़ा कम करते हैं।



त्वचा की जीर्णता या झुर्रियाँ



कोक्यू-10 अल्ट्रा वॉयलेट किरणों से होने वाली क्षति (Free radical Damage) को प्रभावशून्य करने में सक्षम है और हमारी त्वचा की कैंसर, त्वचा में ढीलापन आ जाना, समयपूर्व त्वचा में दाग, धब्बे, रेखाएँ और झुर्रियाँ पड़ जाना आदि रोगों से रक्षा करता है। इसलिए कई विशेषज्ञों ने इसे सौंदर्य-प्रसाधनों में प्रयोग करने की सलाह देते हैं। आजकल कई अच्छी ऐन्टी-रिंकल क्रीम, ऐन्टी-एजिंग क्रीम और फैशियल आदि में कोक्यू-10 का प्रयोग किया जा रहा है।



हृदय रोग



कन्जेस्टिव हार्ट फैल्यर में जीर्णता या ageing, हार्ट अटेक, असंतुलित आहार, धूम्रपान, मदिरापान, वायरस के संक्रमण, मानसिक तनाव आदि कारणों से हृदय की पेशियाँ कमजोर हो जाती है। कन्जेस्टिव हार्ट फैल्यर में कोक्यू-10 बहुत लाभदायक सिद्ध हुई है। हार्ट फैल्यर में कोक्यू-10 हृदय की पेशियों में ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाता है और पम्पिंग क्षमता में वृद्धि करता है। यह श्वासकष्ट, अनिद्रा और पैरों आदि पर आई सूजन भी कम करता है। डॉ॰ फोकर्स ने अपनी शोध में यह देखा है कि कोक्यू-10 से हार्ट फैल्यर के 70% रोगियों को लाभ मिला। जापान में इस पर बहुत शोध हुई है और 1974 से हृदय और अन्य रोगों में खूब प्रयोग में ली जा रही है। कोक्यू-10 उच्च रक्तचाप, ऐन्जाइना और हृदयाघात आदि में भी अच्छे परिणाम होता है।



कॉलेस्ट्रोल



कोक्यू-10 एल.डी.एल. कॉलेस्ट्रोल (बुरा कॉलेस्ट्रोल) को कम करता है और एच.डी.एल. कॉलेस्ट्रोल (अच्छे कॉलेस्ट्रोल) को बढ़ाता है।



कैंसर



कैंसर का एक बड़ा कारण मुक्त-कणों द्वारा शरीर में होने वाली क्षति भी है। मुक्त-कण हमारी कोशिकाओं के डी.एन.ए. को भी क्षति पहुँचाते हैं जिससे म्यूटेशन और कैंसर होता हैं। कोक्यू-10 रक्षा-प्रणाली को मजबूत करता है और शक्तिशाली ऐन्टीऑक्सीड्न्ट है इसलिए यह कैंसर के उपचार में दिया जाता है। यह कीमोथैरेपी के दुष्प्रभावों को भी कम करता है।



मस्तिष्क



शोधकर्ता कोक्यू-10 को कई मानसिक रोगों जैसे पार्किनसन रोग, माइग्रेन, हन्टिंगटन रोग आदि में प्रयोग करने की सलाह देते हैं। इन मानसिक रोगों में कोक्यू-10 और डोपामीन की मात्रा काफी कम हो जाती है। कोक्यू-10 मस्तिष्क तथा नाड़ियों की मुक्त-कणों से रक्षा करता है और नाड़ी सन्देशवाहक डोपामीन का स्तर बढ़ाता है और पार्किनसन रोग आदि रोग में बहुत फायदेमंद है।



बांझपन



कोक्यू-10 शुक्राणओं की कमी या गतिहीनता और बाँझपन में बहुत कारगर सिद्ध हुआ है।



वृक्क-वात की अन्तिम अवस्था (End Stage Renal Failure)



एक शोध में वृक्क-वात या Kidney Failure की अन्तिम अवस्था के 97 रोगियों (जिनका क्रियेटिनीन 5 mg/dl से ज्यादा था, 45 रोगी डायलीसिस पर थे और सबके गुर्दों की क्षमता कम होती जा रही थी) को पानी में घुलनशील कोक्यू-10 बारह सप्ताह तक 60 लि.ग्राम तीन बार दिया गया। नतीजे चौंकाने वाले थे। 81% रोगियों में अच्छे लक्षण देखे गये। सबका क्रियेटिनीन लगभग 2 mg/dl कम हुआ, यूरिया कम हुआ, मूत्र की मात्रा बढ़ी और कई रोगियों का डायलीसिस या तो बंद करना पड़ा या कम करना पड़ा। शोध के प्रभारी डॉ॰ राम सिंह इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि यदि रोगी में मूत्र की मात्रा 500 एम.एल. प्रति दिन से ज्यादा है तो 180 मि.ग्राम कोक्यू-10 12 सप्ताह तक देना चाहिये। यदि 12 सप्ताह बाद मूत्र की मात्रा 1000 एम.एल. प्रति दिन हो जाती है तो ये बहुत अच्छे संकेत हैं और इस उपचार को जारी रखना चाहिये। यदि 12 सप्ताह में विशेष लाभ दिखाई न दे तो समझ लें कि गुर्दे स्थाई रूप से क्षतिग्रस्त हो रहे हैं। इस तरह के कई शोध हो चुके हैं और ऐसे ही बढ़िया परिणाम मिले हैं।



माइटोकोन्ड्रिया



कोक्यू-10 माइटोकोन्ड्रिया में ऊर्जा के उत्पादन में बहुत सहायक है, इसलिए कई माइटोकोन्ड्रिया के रोगों जैसे ऐल्पर रोग, कार्डियामायोपैथी, लफ्ट रोग, माइटोकोन्ड्रियल साइटोपैथी, माइटोकोन्ड्रियल मायोपैथी, एन.ए.डी.एच. की कमी, न्यूरोपैथी, परसन सिन्ड्रोम आदि में बहुत लाभदायक सिद्ध हुआ है। कुछ अन्य रोग माइटोकोन्ड्रिया की विफलता से संबंधित हैं जैसे एल्झाइमर रोग, डायबिटीज, इश्चीमिक हार्ट रोग, पोर्किनसन रोग और मस्कुलर डिस्ट्रोफी में भी कोक्यू-10 लाभदायक है।



मात्रा



यह गोलियों, केप्स्यूल और पॉउडर के रूप में उपलब्ध है। कोक्यू-10 की औसत मात्रा 50 से 200 मि.ग्राम/ दिन है। हृदयरोग, कैंसर, स्थूलता, माइग्रेन, ऐल्झाइमर आदि रोगों में इसे 200 से 400 मि.ग्राम/ दिन दिया जाता है। कई बार इसे 3000 मि.ग्राम/ दिन तक भी दे सकते हैं। इसे दो या तीन खुराक में वसायुक्त भोजन के साथ लेना चाहिये ताकि इसका अवशोषण अच्छी तरह हो। इसका असर आने में 8 से दस सप्ताह लगते हैं।



अंतिम सन्देश



इस तरह हमने देखा कि कोक्यू-10 माइटोकोन्ड्रिया में ऊर्जा (ए.टी.पी.) के उत्पादन में मुख्य भूमिका निभाता है। इसे कई रोगों के उपचार हेतु तथा आयुवर्धक पूरक-तत्व के रूप में हम सभी को प्रयोग करना चाहिये। आजकल विदेशों में ओमेगा-3, फाइबर, विटामिन, खनिज और लिगनेन से भरपूर अलसी के साथ कोक्यू-10 का मिश्रण एक उत्कृष्ट आहार के रूप में बहुत प्रचलित हो रहा है। अलसी में पर्याप्त वसा होती है अतः कोक्यू-10 का अवशोषण सहज और संपूर्ण होता है।



बाहरी कड़ियाँ


  • अलसी चेतना यात्रा

  • वेज ओमेगा


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