हजूर साहिब सन्दर्भ दिक्चालन सूची19°09′10″N 77°19′07″E / 19.15278°N 77.31861°E / 19.15278; 77.3186119°09′10″N 77°19′07″E / 19.15278°N 77.31861°E / 19.15278; 77.31861"ऐतिहासिक दसरा पर्वाची गुरुद्वारात जय्यत तयारी"
सीएस1 मराठी-भाषा स्रोत (mr)सिख धर्म
सिखोंतखतोंनान्देडगोदावरी नदीगुरुद्वारा
Hazur Sahib ਹਜ਼ੂਰ ਸਾਹਿਬ हजुर साहिब | |
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The Hazur Sahib | |
सामान्य विवरण | |
वास्तुकला शैली | Sikh architecture |
शहर | Nanded, Maharashtra |
राष्ट्र | भारत |
निर्देशांक | 19°09′10″N 77°19′07″E / 19.15278°N 77.31861°E / 19.15278; 77.31861निर्देशांक: 19°09′10″N 77°19′07″E / 19.15278°N 77.31861°E / 19.15278; 77.31861 |
हजूर साहिब, सिखों के ५ तखतों में से एक है। यह नान्देड नगर में गोदावरी नदी के किनारे स्थित है। इसमें स्थित गुरुद्वारा 'सच खण्ड' कहलाता है।[1]
सन्दर्भ
↑ "ऐतिहासिक दसरा पर्वाची गुरुद्वारात जय्यत तयारी" [Aitihāsika Dasarā Parvācī Gurudvārāta Jayyata Tayārī]. Sakal (मराठी में). Nanded. 27 September 2011. अभिगमन तिथि 23 May 2015..mw-parser-output cite.citationfont-style:inherit.mw-parser-output qquotes:"""""""'""'".mw-parser-output code.cs1-codecolor:inherit;background:inherit;border:inherit;padding:inherit.mw-parser-output .cs1-lock-free abackground:url("//upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/6/65/Lock-green.svg/9px-Lock-green.svg.png")no-repeat;background-position:right .1em center.mw-parser-output .cs1-lock-limited a,.mw-parser-output .cs1-lock-registration abackground:url("//upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/d/d6/Lock-gray-alt-2.svg/9px-Lock-gray-alt-2.svg.png")no-repeat;background-position:right .1em center.mw-parser-output .cs1-lock-subscription abackground:url("//upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/a/aa/Lock-red-alt-2.svg/9px-Lock-red-alt-2.svg.png")no-repeat;background-position:right .1em center.mw-parser-output .cs1-subscription,.mw-parser-output .cs1-registrationcolor:#555.mw-parser-output .cs1-subscription span,.mw-parser-output .cs1-registration spanborder-bottom:1px dotted;cursor:help.mw-parser-output .cs1-hidden-errordisplay:none;font-size:100%.mw-parser-output .cs1-visible-errorfont-size:100%.mw-parser-output .cs1-subscription,.mw-parser-output .cs1-registration,.mw-parser-output .cs1-formatfont-size:95%.mw-parser-output .cs1-kern-left,.mw-parser-output .cs1-kern-wl-leftpadding-left:0.2em.mw-parser-output .cs1-kern-right,.mw-parser-output .cs1-kern-wl-rightpadding-right:0.2em
दक्षिण की गंगा कही जानेवाली पावन गोदावरी नदी के किनारे बसा शहर नांदेड़, महाराष्ट्र राज्य के मराठवाड़ा क्षेत्र का औरंगाबाद के बाद सबसे बड़ा शहर है, तथा हजूर साहिब सचखंड गुरूद्वारे के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है. यहीं पर सन 1708 में सिक्खों के दसवें तथा अंतिम गुरु गोविन्द सिंह जी ने अपने प्रिय घोड़े दिलबाग के साथ अंतिम सांस ली थी. सन 1708 से पहले गुरु गोविन्द सिंह जी ने धर्म प्रचार के लिए कुछ वर्षों के लिए यहाँ अपने कुछ अनुयायियों के साथ अपना पड़ाव डाला था लेकिन यहीं पर कुछ धार्मिक तथा राजनैतिक कारणों से सरहिंद के नवाब वजीर शाह ने अपने दो आदमी भेजकर उनकी हत्या करवा दी थी. अपनी मृत्यु को समीप देखकर गुरु गोविन्द सिंह जी ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में किसी अन्य को गुरु चुनने के बजाये, सभी सिखों को आदेश दिया की मेरे बाद आप सभी पवित्र ग्रन्थ को ही गुरु मानें, और तभी से पवित्र ग्रन्थ को गुरु ग्रन्थ साहिब कहा जाता है. गुरु गोबिंद सिंह जी के ही शब्दों में: “आज्ञा भई अकाल की तभी चलायो पंथ, सब सीखन को हुकम है गुरु मान्यो ग्रन्थ.
शहर का परंपरागत सिक्ख नाम है अबचल नगर (अविचल यानी न हिलने वाला, स्थिर) यानी शहर जिसे कभी विचलित नहीं किया जा सकता.
यह गुरुद्वारा सिक्ख धर्म के पांच पवित्र तख्तों (पवित्र सिंहासन) में से एक है, अन्य चार तख़्त इस प्रकार हैं:
1. श्री अकाल तख़्त अमृतसर पंजाब
2. श्री केशरगढ़ साहिब, आनंदपुर पंजाब
3. श्री दमदमा साहिब, तलवंडी, पंजाब
4. श्री पटना साहिब, पटना, बिहार
परिसर में स्थित गुरूद्वारे को सचखंड (सत्य का क्षेत्र) नाम से जाना जाता है, यह गुरुद्वारा गुरु गोविन्द सिंह जी की मृत्यु के स्थान पर ही बनाया गया है. गुरूद्वारे का आतंरिक कक्षा अंगीठा साहिब कहलाता है तथा ठीक उसी स्थान पर बनाया गया है जहाँ सन 1708 में गुरु गोविन्द सिंह जी का दाह संस्कार किया गया था. तख़्त के गर्भगृह में गुरुद्वारा पटना साहिब की तर्ज़ पर श्री गुरु ग्रन्थ साहिब तथा श्री दसम ग्रन्थ दोनों स्थापित हैं. गुरूद्वारे का निर्माण सन 1832 से 1837 के बिच पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह जी के द्वारा करवाया गया था.
ऊपर वर्णित पाँचों तख्त पुरे खालसा पंथ के लिए प्रेरणा के स्रोत तथा ज्ञान के केंद्र हैं. गुरु गोविन्द सिंह जी की यह अभिलाषा थी की उनके निर्वाण के बाद भी उनके सहयोगियों में से एक श्री संतोख सिंह जी (जो की उस समय उनके सामुदायिक रसोईघर के की देखरेख करते थे), नांदेड़ में ही रहें तथा गुरु का लंगर (भोजन का स्थान) को निरंतर चलाये तथा बंद न होने दें, गुरु की इच्छा के अनुसार भाई संतोख सिंह जी के अलावा अन्य अनुयायी चाहें तो वापस पंजाब जा सकते हैं लेकिन अपने गुरु के प्रेम से आसक्त उन अनुयायियों ने भी वापस नांदेड़ आकर यहीं रहने का निर्णय लिया तथा उन्होंने गुरु गोविन्द सिंह जी की याद में एक छोटा सा मंदिर मंदिर बनाया तथा उसके अन्दर गुरु ग्रन्थ साहिब जी की स्थापना की, वही छोटा सा मंदिर आज सचखंड साहिब के नाम से सिक्खों के के महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल के रूप में ख्यात है.