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गारो, भारत की एक प्रमुख जनजाति है। गारो लोग भारत के मेघालय राज्य के गारो पर्वत तथा बांग्लादेश के मयमनसिंह जिला के निवासी आदिवासी हैं। इसके अलावा भारत में असम के कामरूप, गोयालपाड़ा और कारबि आंलं जिला में तथा बांग्लादेश में टांगाइल, सिलेट, शेरपुर, नेत्रकोना, सुनामगंज, ढाका और गाजीपुर जिलों में भी गारो लोग रहते हैं।
अनुक्रम
1 परिचय
2 संस्कृति
3 इन्हें भी देखें
4 बाहरी कड़ियाँ
परिचय
गारो तिब्बती-बर्मी भाषा बोलते हैं जिसकी शब्दावली तथा वाक्यरचना का तिब्बती भाषा से बहुत सादृश्य है। गारो तिब्बत से पूर्वी भारत और बर्मा होते हुए अंततोगत्वा असम की गारो पहाड़ियों पर आकर रहने लगे।
गारो पीतवर्ण हैं, कुछ में श्यामलता भी है। कद नाटा, चेहरा छोटा, गोल और नाक चपटी होती है। जब अन्यत्र जाते हैं तब गारो पुरुष नीली पट्टी का वस्त्र और सिर पर मुर्गे के पंखोंवाला मकुट पहनते हैं।
गारो जाति के लोग पहाड़ी तथा मैदानी दो समूहों में बँटें हैं। गारो पहाड़ियों से बाहर रहनेवाले सभी गारो लोग मैदानी कहलाते हैं।
संस्कृति
गारो संसार की उन कुछेक जनजातियों में से है जिसका मातृमूलक परिवार आज भी अपनी सभी विशेषताओं के साथ कायम है। वंशावली नारी से चलती है और संपत्ति की स्वामिनी भी नारी होती है। विवाह होने पर पुरुष रात्रि की ओट में ससुराल में पत्नी के पास जाता है वहाँ न भोजन ग्रहण करता है, न पानी। घर की सबसे छोटी बहन संपत्ति की स्वामिनी (नोकना) होती है। विवाह होने पर स्त्रियाँ अपने घर पर ही रहती हैं। सामान्यत: बुआ की लड़की से विवाह होता है। पुरुष को अधिकार होता है कि वह अपने भानजे को अपना जामाता बना ले और पुत्र को भानजी के साथ एक कमरे में बंद कर दे। जब गारो युवक अपने मामा की लड़की से विवाह करता है, तब उस समय, यदि सास भी विधवा हो, तब उससे भी विवाह करना पड़ता है।
गारो की उपजीविका का आधार झूम (दहिया) की खेती और मछली का शिकार है। जंगल काटकर उसमें आग लगा दी जाती है और उसकी राख से एक दों फसलें उगाकर स्थान परिवर्तन कर दिया जाता है। घर बाँस और फूंस के बने होते हैं। गाँव के युवक अपने नाचने गाने के लिए अलग घर बनाते हैं जिसे 'नोकोपांटे' कहते हैं। मृत पूर्वजों की पूजा की जाती है जिनकी आत्माएँ घर के बीचवाले सबसे बड़े कमरे में निवास करती हैं। मद्यपान जीवन का आवश्यक अंग है।
मुर्दो को जलाने की प्रथा है। पूर्ववर्ती काल में सरदार तथा राजा के मृत शरीर के साथ उनके दासों को भी जला दिया जाता था और संबंधी लोग चिता में जलाने के लिए अधिक से अधिक नरमुंड काटकर लाने का प्रयत्न करते थे। रोग का जोर होने पर गाँव के बाहर रास्तों को घेर लिया जाता है और डंडों से वृक्षों को पीटा जाता है ताकि प्रेत आत्माएँ भाग जाएँ। ऐसे अवसर पर सूअर और मुर्गी की बलि भी दी जाती है।
कुछ गारो ईसाई हो गए है किंतु उनके मातृमूलक परिवार पर इसका विपरीत प्रभाव नहीं पड़ा है पर अन्य बहुत-सी भारतीय जनजातियों की भाँति गारों जाति भी बाहरी प्रभाव के परिणामस्वरूप विशृंखला और परिवर्तन की पीड़ा का अनुभव कर रही है।
इन्हें भी देखें
- राभा
बाहरी कड़ियाँ
पश्चिमी गारो हिल्स (यात्रा सलाह)- मेघालय का जालघर
- यहाँ दामाद के साथ शादी कर लेती हैं सास!
- East Garo Hills District official website
- West Garo Hills District official website
- South Garo Hills District official website
- गारो लोग
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