जोशीमठ का पौराणिक संदर्भ दिक्चालन सूची

Multi tool use
Multi tool use

जोशीमठ





जैसा कि अधिकांश प्राचीन एवं श्रद्धेयस्थलों के लिये होता है, उसी प्रकार जोशीमठ का भूतकाल किंवदन्तियों एवं रहस्यों से प्रभावित है जो इसकी पूर्व प्रधानता को दर्शाता है। माना जाता है कि प्रारंभ में जोशीमठ का क्षेत्र समुद्र में था तथा जब यहां पहाड़ उदित हुए तो वह नरसिंहरूपी भगवान विष्णु की तपोभूमि बनी।


किंबदन्ती में दानव हिरण्यकश्यपु तथा उसके पुत्र प्रह्लाद की कथा है। हिरण्यकश्यपु को वरदान प्राप्त था कि किसी स्त्री या पुरूष, दिन या रात, घर के अंदर या बाहर या तथा किसी शस्त्र के प्रहार द्वारा उसे मारा नहीं जा सकेगा। इसने उसे अहंकारी बना दिया और वह अपने को भगवान मानने लगा। उसने अपने राज्य में विष्णु की पूजा को वर्जित कर दिया। प्रह्लाद, भगवान विष्णु का उपासक था और यातना एवं सजा के बावजूद वह विष्णु की पूजा करता रहा। क्रोधित होकर हिरण्यकश्यपु ने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह अपनी गोद में प्रह्लाद को लेकर प्रज्ज्वलित अग्नि में चली जाय क्योंकि होलिका को वरदान था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी। प्रह्लाद को कुछ भी नही हुआ और होलिका जलकर राख हो गयी। अंतिम प्रयास में हिरण्यकश्यपु ने एक लोहे के खंभे को गर्म कर लाल कर दिया तथा प्रह्लाद को उसे गले लगाने को कहा। एक बार फिर भगवान विष्णु प्रह्लाद को उबारने आ गये। खंभे से भगवान विष्णु नरसिंह के रूप में प्रकट हुए तथा हिरण्यकश्यपु को चौखट पर, गोधुलि बेला में आधा मनुष्य, आधा जानवर (नरसिंह) के रूप में अपने पंजों से मार डाला।


कहा जाता है कि इस अवसर पर नरसिंह का क्रोध इतना प्रबल था कि हिरण्यकश्यपु को मार डालने के बाद भी कई दिनों तक वे क्रोधित रहे। अंत में, भगवती लक्ष्मी ने प्रह्लाद से सहायता मांगी और वह तब तक भगवान विष्णु का जप करता रहा जब तक कि वे शांत न हो गये। आज उन्हें जोशीमठ के सर्वोत्तम मंदिर में शांत स्वरूप में देखा जा सकता है।


नरसिंह मंदिर से संबद्ध एक अन्य रहस्य का वर्णन स्कंद पुराण के केदारखंड में है। इसके अनुसार शालीग्राम की कलाई दिन पर दिन पतली होती जा रही है। जब यह शरीर से अलग होकर गिर जायेगी तब नर एवं नारायण पर्वतों के टकराने से बद्रीनाथ के सारे रास्ते हमेशा के लिये बंद हो जायेंगे। तब भगवान विष्णु की पूजा भविष्य बद्री में होगी जो तपोवन से एक किलोमीटर दूर जोशीमठ के निकट है।


इस किंवदंती से उदित एक कथा यह है कि इस क्षेत्र के प्रारंभिक राजा वासुदेव का एक वंशज एक दिन शिकार के लिये जंगल गया तथा उसकी अनुपस्थिति में भगवान विष्णु नरसिंह मानव रूप में वहां आये तथा रानी से भोजन की याचना की। रानी ने उन्हें खाने को काफी कुछ दिया तथा खाने के बाद वे वहां राजा के बिस्तर पर सो गये। राजा जब शिकार से वापस आया तो उसने अपने बिस्तर पर एक अजनबी को सोया देखा। उसने अपनी तलवार उठायी और उसकी बांह पर आघात किया, परंतु वहां से रक्त के बदले दूध बह निकला। तब भगवान विष्णु प्रकट हुए तथा राजा से बताया कि वह उन्हें आघात पहुंचाने का प्रायश्चित करने जोशीमठ छोड़ दे तथा अपना घर कत्यूर में बसा लें। उन्होंने कहा कि जो आघात उन्हें उसने दिया है वह मंदिर में उनकी मूर्ति पर रहेगा और जिस दिन वह गिर जायेगा, उस दिन राजा के वंश का अंत हो जायेगा।


जोशीमठ ही वह जगह है जहां ज्ञान प्राप्त करने से पहले आदि शंकराचार्य ने शहतूत के पेड़ के नीचे तप किया था। यह कल्पवृक्ष जोशीमठ के पुराने शहर में स्थित है और वर्षभर सैकड़ों उपासक यहां आते रहते हैं। बद्रीनाथ के विपरीत जोशीमठ प्रथम धाम या मठ है जिसे शंकराचार्य ने स्थापित किया, जब वे सनातन धर्म के सुधार के लिये निकले। इसके बाद उन्होंने भारत के तीन कोनों में द्वारका (पश्चिम) श्री गोरी (दक्षिण) और पुरी (पूर्व) में मठ स्थापित किये।







X,7,3bEphZvXuqy pXS67Q7A wUhK7thcYNZEFy58CgX3OlJ L0g TR y0V,Pf,wKgHz MV,kCYH Sy9,posrBxRxml,t35k KDKx
26TFG7K1 r jaxpY7izgIKY9LLP,6Z s0YpwCz4kVBYHmjfh7,mKkZBEHWDzXseZUnpSoFIU69D4

Popular posts from this blog

कुँवर स्रोत दिक्चालन सूची"कुँवर""राणा कुँवरके वंशावली"

शेव्रोले वोल्ट अनुक्रम इतिहास इन्हे भी देखें चित्र दीर्घा संदर्भ दिक्चालन सूची

चैत्य भूमि चित्र दीर्घा सन्दर्भ बाहरी कडियाँ दिक्चालन सूची"Chaitya Bhoomi""Chaitya Bhoomi: Statue of Equality in India""Dadar Chaitya Bhoomi: Statue of Equality in India""Ambedkar memorial: Centre okays transfer of Indu Mill land"चैत्यभमि