बालगीतों में नई क्रांति का उदय दिक्चालन सूची


19 जनवरी 1919 में उत्तर प्रदेश के बरेली में जन्में निरंकार देव सेवक  बाल साहित्य के वरिष्ठ कवि रहे है । वह बाल सहित्य में क्रांतिकारी परिवर्तन लेकर आए । बाल साहित्य में चल रही उदेशात्मक परम्परा के विपरीत जाकर निरंकार देव सेवक ने नए प्रयोगों द्वारा बाल साहित्य को एक नए रूप में प्रस्तुत किया । बालमन की चंचलता, कोमलता और जिज्ञासा को महसूस कर  निरंकार देव सेवक ने जो गीत रचे वह इतिहास में ही नहीं वरण हर जुबान पर  अमर हो गए । सरल भाषा और बेजोड़ कल्पना शक्ति से बुनी गई बाल रचनाओं का प्रभाव और आकर्षण हर किसी को लुभाता है । जो रचनाएँ हृदय को स्पर्श नहीं करती वह अर्थहीन होती हैं। निरंकार देव सेवक ने बच्चों के हृदय को टटोल कर उनकी रूचि के अनुरूप विषयों का चयन किया । निरंकार देव सेवक के  बालगीत एवं शिशुगीतों  ने एक स्वर्णिम इतिहास  रचा । उनके रचे गीत बड़ों से लेकर बच्चों तक हर श्रेणी के लोगों को प्रिय रहे । उबाऊ गीत कभी भी बच्चों के लिए मनोरंजन का साधन नहीं होते । कोई भी बदलाव बिना संघर्ष के नहीं आता उनके अकथ परिश्रम के कारण आज बाल साहित्य एक बड़े मुकाम हासिल कर चुका है । बाल साहित्य के उत्थान में उनका अमर योगदान बहुत महत्त्व रखता है । बच्चों की दुनिया कल्पनाओं और जादू से भरी होती है जो कवि उनकी दुनिया में प्रवेश करता है । वही रोचक बाल गीत रच सकता है । अगर किसी बच्चे के पास घर जाने के, छोटा और बड़ा  दो रस्ते हो, बड़े  रास्ते में फूल, तितलियाँ, नदी-नाले हो तथा छोटा रास्ता नीरस हो तब बालक हमेशा अपनी रूचि के अनुरूप उसी रस्ते का चुनाव करता  है जो उन्हें आनन्दित करे । निरंकार देव सेवक ने बाल मन के कौतूहल को न सिर्फ पहचाना बल्कि खुद उन पलों की जिया । उनकी रचनाओं का माधुर्य, कल्पनाशीलता तथा अद्भुत लयबद्धता मन पटल पर गहरी छाप छोड़ती है ।


लयबद्ध रचनाएँ शीघ्र याद हो जाती हैं । अतुकान्त रचनाएँ बच्चों को कभी आकर्षित नहीं करती । निरंकार देव सेवक ने महसूस किया की शिक्षाप्रद उपदेशों की बजाय बच्चे, बड़ों  के अनुकरण से सीखते हैं । बाल कविताएँ बालमन के मानसिक विकास में अहम भूमिका निभाती हैं । रुचिकर बाल रचनाएँ बच्चों की याद में लम्बे समय तक बनी रहती हैं जो रचनाएँ या कहानियाँ बच्चों को पसंन्द होती हैं उन्हें वह अपने साथियों को भी सुनाते हैं फूलों के पीछे दौड़ना , बारिश में भीगना और कागज की नाव चलाना, पेड़ों पर चढ़ना, जंगल,  नदी-नालों तथा  जीव-जन्तुओं को करीब से देखना उन्हें सुख प्रदान करता हैं।


बच्चे प्रकृति से संवाद करते हैं बच्चों का हर चीज को देखने का अपना नजरिया होता है ।


मैं अपने घर से निकली,


तभी एक पीली तितली ।


पीछे से आई उड़कर,


बैठ गई मेरे सिर पर ।


तितली रानी बहुत भली,


मैं क्या कोई फूल-कली ।


उपरोक्त बाल गीत में बच्चे के तिलली  से संवाद ही बच्चों को इस कविता से बाँध देता हैं। भले ही यह कविता संदेशप्रद प्रतीत नहीं होती परन्तु इसमें छुपे अपरोक्ष ज्ञान को बच्चे ग्रहण कर लेते हैं पीली तितली सुनते ही वह पीले रंग की कल्पना में खो जाते हैं ।


लाल टमाटर-लाल टमाटर,


मैं तो तुमको खाऊँगा,


रुक जाओ, मैं थोड़े दिन में


और बड़ा हो जाऊँगा ।


मूक वस्तुओं से संवाद की इस कला ने निरंकार देव सेवक के बाल गीतों को लोकप्रियता प्रदान की इस प्रकार के संवेदन शील बालगीत बच्चों के हृदय में स्थान बनाते हैं।


हाथी राज, कहाँ चले ?


सूंड हिलाते कहाँ चले ?


पूँछ हिलाते कहाँ चले ?


मेरे घर आ जाओ ना,


हलुआ-पूरी खाओ ना !


आओ, बैठो कुर्सी पर,


कुर्सी बोली चर-चर-चर !


निरंकार देव सेवक ने जिस अभिनव कल्पना से गीत रचे वह आज भी वही खुशबू लिए हुए हैं । जब एक बालक हाथी के कुर्सी पर बैठने किए अनोखी कल्पना करता है । तब उसके मुख पर जो नैसगिक मनोहर मुस्कान तैर जाती हैं उसी मुस्कान को कायम रखने में सेवक जी के गीतों ने  बहुत  बड़ा योगदान दिया हैं।


एक शहर है टिंबक-टू,


लोग वहाँ के हैं बुद्धू!


बिना बात के ही-ही-ही,


बिना बात के हू-हू-हू !  


जब कवि कल्पनाओं की उड़न भरता है । तब कल्पनाओं की नगरी में भ्रमण करता हैं । उन्हीं अनुभवों को जब बाल गीत की पृष्ठभूमि मिलती है तब ऐसे गीत,  बालमन की दुनिया का हिस्सा बन जाते हैं । निरंकार देव सेवक के लिए गीत हमारी प्रत्येक बाल पीढ़ी के लिए अनमोल उपहार सिद्ध होगें ।


 लेखिका- सुनीता काम्बोज (स्लाइट लौंगोवाल) प्रकाशित-अविराम साहित्यिकी पत्रिका-जनवरी- मार्च 2019







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