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यू के कथा सम्मानउपन्यासभगवानदास मोरवाल


भगवानदास मोरवालयू के कथा सम्मान






   

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रेत (कथा)  

Kopački rit meadow.jpg
मुखपृष्ठ
लेखक
भगवानदास मोरवाल
देश
भारत
भाषा
हिन्दी
विषय
(साहित्य)
प्रकाशक
राजकमल प्रकाशन
प्रकाशन तिथि
२००८
पृष्ठ
३२४
आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰
8126715332

हिन्दी कथा में अपनी अलग और देशज छवि बनाए और बचाए रखने वाले चर्चित लेखक भगवानदास मोरवाल के इस नये उपन्यास के केन्द्र में है - माना गुरु और माँ नलिन्या की संतान कंजर और उसका जीवन। कंजर यानी काननचर अर्थात् जंगल में घूमने वाला। अपने लोक-विश्वासों व लोकाचारों की धुरी पर अपनी अस्मिता और अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करती एक विमुक्त जनजाति।


राजकमल से प्रकाशित इस उपन्‍यास में कहानी है कंजरों की - एक ऐसी घुमंतू जाति जो समूचे दक्षिण-पश्चिमी एशिया में कमोबेश फैली हुई है। कहानी घूमती है कमला सदन नाम के एक मकान के इर्द-गिर्द, जो परिवार की मुखिया कमला बुआ के नाम पर रखा गया है और जहां रुक्मिणी, संतो, पिंकी आदि तमाम महिलाओं का जमघट है। ये सभी पारंपरिक यौनकर्मी हैं और जिस कंजर समाज से वे आती हैं, वहां इस पेशे को लंबे समय से मान्‍यता मिली हुई है। समूचे परिदृश्‍य में सिर्फ एक पुरुष पात्र है जिसे सभी बैदजी कह कर पुकारते हैं। यह पात्र वैसे तो दूसरी जाति का है, लेकिन घर-परिवार के मामलों में इसे सलाहकार और हितैषी की भूमिका में दिखाया गया है। यहीं से शुरू होती है स्‍त्री विमर्श के निम्‍नवर्गीय प्रसंगों की दास्‍तान - जहां स्‍त्री की देह को पुरुष समाज के खिलाफ लेखक ने एक औजार और हथियार के रूप में स्‍थापित किया है।[1]


गाजूकी और कमला सदन के बहाने यह कथा ऐसे दुर्दम्य समाज की कथा है जिसमें एक तरफ़ कमला बुआ, सुशीला, माया, रुक्मिनी, वंदना, पूनम हैं; तो दूसरी तरफ़ हैं संतो और अनिता भाभी। 'बुआ' यानी कथित सभ्य समाज के बर-अक्स पूरे परिवार की सर्वेसर्वा, या कहिए पितृसत्तात्मक व्यवस्था में चुपके से सेंध लगाते मातृसत्तात्मक वर्चस्व का पर्याय और 'गंगा नहाने' का सुपात्र। जबकि 'भाभी' होने का मतलब है घरों की चारदीवारी में घुटने को विवश एक दोयम दर्जे का सदस्य। एक ऐसा सदस्य जो परिवार का होते हुए भी उसका नहीं है।


रेत भारतीय समाज के उन अनकहे, अनसुलझे अंतर्विरोधों व वटों की कथा है, जो घनश्याम 'कृष्ण' उर्फ़ वैद्यजी की 'कुत्ते फेल' साइकिल के करियर पर बैठ गाजूकी नदी के बीहड़ों से होते हुए आगे बढ़ती है। यह सफलताओं के शिखर पर विराजती रुक्मिणी कंजर का ऐसा लोमहर्षक आख्यान है जो अभी तक इतिहास के पन्नों में रेत से अटा हुआ था। जरायम-पेशा और कथित सभ्य समाज के मध्य गड़ी यौन-शुचिताओं का अतिक्रमण करता, अपनी गहरी तरल संलग्नता, सूक्ष्म संवेदनात्मक रचना-कौशल तथा ग़ज़ब की क़िस्सागोई से लबरेज़ लेखक का यह नया शाहकार, हिन्दी में स्त्री-विमर्श के चौखटों व हदों को तोड़ता हुआ इस विमर्श के एक नये अध्याय की शुरुआत करता है। इस उपन्यास को २००९ में यू के कथा सम्मान द्वारा सम्मानित किया गया है।[2]



सन्दर्भ



  1. "दैहिक विमर्श की रेत" (एचटीएम). तहलका हिंदी. अभिगमन तिथि ५ अगस्त २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद).mw-parser-output cite.citationfont-style:inherit.mw-parser-output qquotes:"""""""'""'".mw-parser-output code.cs1-codecolor:inherit;background:inherit;border:inherit;padding:inherit.mw-parser-output .cs1-lock-free abackground:url("//upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/6/65/Lock-green.svg/9px-Lock-green.svg.png")no-repeat;background-position:right .1em center.mw-parser-output .cs1-lock-limited a,.mw-parser-output .cs1-lock-registration abackground:url("//upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/d/d6/Lock-gray-alt-2.svg/9px-Lock-gray-alt-2.svg.png")no-repeat;background-position:right .1em center.mw-parser-output .cs1-lock-subscription abackground:url("//upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/a/aa/Lock-red-alt-2.svg/9px-Lock-red-alt-2.svg.png")no-repeat;background-position:right .1em center.mw-parser-output .cs1-subscription,.mw-parser-output .cs1-registrationcolor:#555.mw-parser-output .cs1-subscription span,.mw-parser-output .cs1-registration spanborder-bottom:1px dotted;cursor:help.mw-parser-output .cs1-hidden-errordisplay:none;font-size:100%.mw-parser-output .cs1-visible-errorfont-size:100%.mw-parser-output .cs1-subscription,.mw-parser-output .cs1-registration,.mw-parser-output .cs1-formatfont-size:95%.mw-parser-output .cs1-kern-left,.mw-parser-output .cs1-kern-wl-leftpadding-left:0.2em.mw-parser-output .cs1-kern-right,.mw-parser-output .cs1-kern-wl-rightpadding-right:0.2em


  2. "रेत" (पीएचपी). भारतीय साहित्य संग्रह. अभिगमन तिथि ५ अगस्त २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)








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