प्राच्य चर्च सन्दर्भ ग्रन्थ दिक्चालन सूची

ईसाई धर्म


ईसाई समुदायअंतिओकयेरुसलेमसिकंदरियाकुस्तुंतुनियारोमरोम के चर्चलैटिन भाषा




जो ईसाई समुदाय, पूजा तथा शासन के विषय में अंतिओक, येरुसलेम, सिकंदरिया और कुस्तुंतुनिया जैसे प्राचीन ईसाई केंद्रों की प्रणाली अपनाते हैं उन्हें प्राच्य चर्च (चर्च ऑफ द ईस्ट) कहा जाता है क्योंकि वे केंद्र रोम के पूरब में हैं। इन समुदायों के सदस्य आजकल पश्चिम यूरोप तथा अमरीका में भी पाए जाते हैं। अधिकांश तो वे रोम के चर्च से अलग हो गए हैं किंतु उनमें सब मिलाकर लगभग डेढ़ करोड़ रोमन काथलिक हैं, जो रोम का शासन स्वीकार करते हैं यद्यपि वे अन्य प्राच्य चर्च वालों की भाँति पूजा में अपनी ही प्राचीन पद्धति पर चलते हैं और अन्य रोमन काथलिक समुदायों की तरह लैटिन भाषा का प्रयोग नहीं करते। रोम से संयुक्त रहने वाले प्राच्य चर्चों को और उनके सदस्यों को यूनिएट (एकतावादी) कहते हैं।


रोम से अलग रहने वाले प्राच्य चर्चों की सिंहावलोकन उनके अलग हो जाने के कालक्रमानुसार यहाँ प्रस्तुत है।


  • (१) सन् ४३१ ई. में नेस्तोरियस के सिद्धांत को भ्रामक ठहराया गया था (देखें, अवतारवाद)। यह सिद्धांत पूर्व सीरिया (आजकल ईराक-ईरान) के ईसाइयों को ठीक ही जँचा, दूसरी ओर वे रोमन प्राच्य साम्राज्य के बाहर ही रहते थे, अत: उन्होंने अपने को एक स्वतंत्र नेस्तोरियन चर्च के रूप में घोषित किया। यह चर्च शताब्दियों तक फलता फूलता रहा और चीन, मध्य एशिया तथा दक्षिण भारत तक फैल गया। १६वीं शताब्दी में इस चर्च से संबंध रखने वाले अधिकांश सदस्य, अर्थात् बाकुल के कालदियन ईसाई (आजकल १७००००) तथा मालाबार के थोमस ईसाई (आजकल लगभग दस लाख) रोमन काथलिक चर्च में सम्मिलित हुए। दक्षिण भारत के अन्य प्राचीन ईसाई १७वीं शताब्दी में जैकोबाइट चर्च के सदस्य बन गए किंतु सन् १८४३ ई. में इनमें से एक समुदाय प्रोटेस्टैट धर्म के कुछ सिद्धांत अपनाकर अलग हो गया। वे मर-थोमाइट कहलाते हैं, (आजकल लगभग २,६०,०००)। सन् १९०७ में एक अन्य समुदाय ने नेस्तोरियन चर्च से अपना संबंध स्थापित किया और सन् १९३० ई. में एक तीसरा समुदाय रोमन काथलिक बन गया (वे सिरोमलंकर कहलाते हैं, आजकल लगभग १ लाख)।

नेस्तोरियन ईसाइयों की संख्या आजकल लगभग एक लाख है, वे मुख्य रूप से अमरीका, रूस, ईराक, ईरान तथा दक्षिण भारत में (लगभग ५,०००) रहते हैं।


  • (२) सन् ४५१ ई. में कालसे दोन की ईसाई विश्वसभा ने मोनोफिसिटज़्म का सिद्धांत भ्रामक घोषित किया था। वाद में जब सीरिया, मिस्त्र तथा आरमीनिया के कई समुदाय कुस्तुंतुनिया से अलग हो गए, उन्होंने मोनोफिसिटिज़्म सिद्धांत अपनाया।
  • (अ) सीरिया का ईसाई समुदाय, अपने नेता याकूब बुरदेआना के अनुसार जैकोबाइट कहलाता है। आजकल सीरिया तथा ईराक में एक लाख से कम जैकोबाइट शेष हैं किंतु दक्षिण भारत में उनकी संख्या लगभग सात लाख है।
  • (आ) मिस्त्र का प्राचीन ईसाई समुदाय प्राय: कोप्त (Copt) कहलाता है। यह समुदाय मिस्त्र से एथियोपिया में फैल गया, आजकल उसकी सदस्यता इस प्रकार है : मिस्त्र में १५ लाख तथा एथियोपिया में आठ करोड़।
  • (इ) सन् ३०० ई. से ईसाई धर्म आरमीनिया का राजधर्म घोषित किया गया था। बाद में आरमीनिया ने मोनोफिसाइट सिद्धांत अपनाया। आजकल आरमीनियन ईसाइयों की संख्या लगभग २५ लाख है जो अधिकांश रूस में निवास करते हैं।
  • (३) रोमन साम्राज्य की राजधानी बनने के कारण कुस्तुंतुनिया पूर्व यूरोप का प्रधान ईसाई केंद्र बन गया था। इस केंद्र से ईसाई धर्म रूस तथा समस्त पूर्व यूरोप में फैल गया। अत: सन् १९५४ में जब कुस्तुंतुनिया का चर्च रोम से अलग हो गया तो पूर्व यूरोप के प्राय: समस्त ईसाई समुदायों ने कुस्तुंतुनिया का साथ दिया (देखें, चर्च का इतिहास)। उन समुदायों को आर्थोदोक्स (अर्थात् 'सही शिक्षा का अनुयायी') कहा जाता है क्योंकि वे ११वीं शती तक रोमन चर्च द्वारा धर्म सिद्धांत के रूप में घोषित सभी धार्मिक शिक्षाएँ स्वीकार करते हैं।

उत्पत्ति की दृष्टि से वे सभी समुदाय कुस्तुंतुनिया से संबद्ध हैं, किंतु सन् १४४८ ई. में रूस का चर्च स्वाधीन हो गया और बाद में बहुत से राष्ट्रीय समुदायों ने अपने को स्वतंत्र घोषित किया। फिर भी आजकल पूर्व यूरोप के बहुत से अर्थोदोक्स चर्च (यूनान, साइप्रस, अलबानिया, हंगरी, चेकोस्लोवाकिया, पोलैंड) कुस्तुंतुनिया अथवा पेत्रियार्क को अपना अध्यक्ष मानते हैं, यथापि व उनका हस्तक्षेप स्वीकार नहीं करते। सर्विया (यूगोस्लाविया), बुलगारिया, रूमानिया तथा जार्जिया के आर्थोदोक्स समुदाय अपने को पूर्ण रूप से स्वतंत्र घोषित कर चुके हैं।


पाचवीं शती में जब सीरिया तथा मिस्त्र के अधिकांश ईसाई अलग हो गए तो उनमें से कुछ कुस्तुंतुनिया के साथ रहे थे, उनको मेलकाइट (Melkite) कहा जाता है। बाद में वे कुस्तुंतुनिया के साथ आर्थोदोक्स बन गए किंतु इधर वे पर्याप्त संख्या में रोमन काथलिक चर्च में सम्मिलित हुए।


आर्थोदोक्स ईसाइयों की कुल संख्या बीस करोड़ से अधिक है, उन समुदायों में से रूस का आर्थोदोक्स चर्च सबसे महत्वपूर्ण है।



सन्दर्भ ग्रन्थ


  • डी.अनवाटर : दी क्रिश्चियन चर्चेज़ ऑव दि ईस्ट, द्वितीय खंड;

  • आर. जेनिन : एग्लिस ओरिएंताल, पेरिस, १९५५।


Popular posts from this blog

कुँवर स्रोत दिक्चालन सूची"कुँवर""राणा कुँवरके वंशावली"

Why is a white electrical wire connected to 2 black wires?How to wire a light fixture with 3 white wires in box?How should I wire a ceiling fan when there's only three wires in the box?Two white, two black, two ground, and red wire in ceiling box connected to switchWhy is there a white wire connected to multiple black wires in my light box?How to wire a light with two white wires and one black wireReplace light switch connected to a power outlet with dimmer - two black wires to one black and redHow to wire a light with multiple black/white/green wires from the ceiling?Ceiling box has 2 black and white wires but fan/ light only has 1 of eachWhy neutral wire connected to load wire?Switch with 2 black, 2 white, 2 ground and 1 red wire connected to ceiling light and a receptacle?

चैत्य भूमि चित्र दीर्घा सन्दर्भ बाहरी कडियाँ दिक्चालन सूची"Chaitya Bhoomi""Chaitya Bhoomi: Statue of Equality in India""Dadar Chaitya Bhoomi: Statue of Equality in India""Ambedkar memorial: Centre okays transfer of Indu Mill land"चैत्यभमि