जया एकादशी अनुक्रम जया एकादशी की कथा विधि इन्हें भी देखें सन्दर्भ दिक्चालन सूचीrewrite this sectionसं

गणेश चतुर्थीवसन्त पञ्चमीमकर संक्रान्तिमहाशिवरात्रिहोलीराम नवमीहरछठ जन्माष्टमीचकचंदाहर‌ियाली तीजरक्षाबन्धननवरात्रिदशहरादुर्गा पूजाकरवा चौथअहोई अष्टमीधनतेरसनर्क चतुर्दशीदीपावलीगोवर्धन पूजाभाई दूजछठ पूजासूर्य जन्मोत्सवओणमपोंगलरथयात्राअराणमुला नौका दौड़त्रिचूरपूरमविषुक्कणिकारतीगई दीपमउगादिविशाखा उत्सवतिरुवतिराअमावस्यामौनीसोमवतीप्रदोषअनंत चतुर्दशीअक्षय तृतीयासत्य नारायण कथापितृ विसर्जन अमावस्याअक्षय नवमीहरतालिका व्रतऋषिपंचमीचैत्र (हनुमान जयंती)वैशाख (बुद्ध जयंती)ज्येष्ठ (वट सावित्री)आषाढ़ (गुरू-पूर्णिमा)श्रावण पूर्णिमाभाद्रपद पूर्णिमाआश्विन (शरद पूर्णिमा)कार्तिक पूर्णिमाअग्रहण्य पूर्णिमापौष पूर्णिमामाघ (माघ मेला) फाल्गुन (होली)


Infobox holiday with missing fieldMoveable holidays (to check)Infobox holiday (other)All articles with minor POV problemsArticles with minor POV problems जुलाई 2016Wikipedia articles written like a manual or guidebook from अप्रैल 2016Wikipedia articles needing style editing from अप्रैल 2016 All articles needing style editingसंस्कृतिहिन्दू त्यौहारएकादशी















जया एकादशी
आधिकारिक नाम
जया एकादशी व्रत
अनुयायी
हिन्दू, भारतीय, भारतीय प्रवासी
प्रकार
Hindu
उद्देश्य
सर्वकामना पूर्ति
तिथि
माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है।
जया एकादशी के विषय में जो कथा प्रचलित है उसके अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से निवेदन करते हैं कि माघ शुक्ल एकादशी को किनकी पूजा करनी चाहिए, तथा इस एकादशी का क्या महात्मय है। श्री कृष्ण कहते हैं माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी को "जया एकादशी" कहते हैं। यह एकादशी बहुत ही पुण्यदायी है, इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति नीच योनि जैसे भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्त हो जाता है।[क्या ये तथ्य है या केवल एक राय है?] श्री कृष्ण ने इस संदर्भ में एक कथा भी युधिष्ठिर को सुनाई।




अनुक्रम





  • 1 जया एकादशी की कथा


  • 2 विधि


  • 3 इन्हें भी देखें


  • 4 सन्दर्भ




जया एकादशी की कथा


नंदन वन में उत्सव चल रहा था। इस उत्सव में सभी देवता, सिद्ध संत और दिव्य पुरूष वर्तमान थे। उस समय गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य प्रस्तुत कर रही थीं। सभा में माल्यवान नामक एक गंधर्व और पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या का नृत्य चल रहा था। इसी बीच पुष्यवती की नज़र जैसे ही माल्यवान पर पड़ी वह उस पर मोहित हो गयी। पुष्यवती सभा की मर्यादा को भूलकर ऐसा नृत्य करने लगी कि माल्यवान उसकी ओर आकर्षित हो। माल्यवान गंधर्व कन्या की भंगिमा को देखकर सुध बुध खो बैठा और गायन की मर्यादा से भटक गया जिससे सुर ताल उसका साथ छोड़ गये।


इन्द्र को पुष्पवती और माल्यवान के अमर्यादित कृत्य पर क्रोध हो आया और उन्होंने दोनों को श्राप दे दिया कि आप स्वर्ग से वंचित हो जाएं और पृथ्वी पर निवास करें। मृत्यु लोक में अति नीच पिशाच योनि आप दोनों को प्राप्त हों। इस श्राप से तत्काल दोनों पिशाच बन गये और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर दोनों का निवास बन गया। यहां पिशाच योनि में इन्हें अत्यंत कष्ट भोगना पड़ रहा था। एक बार माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन दोनो अत्यंत दु:खी थे उस दिन वे केवल फलाहार रहे। रात्रि के समय दोनों को बहुत ठंढ़ लग रही थी अत: दोनों रात भर साथ बैठ कर जागते रहे। ठंढ़ के कारण दोनों की मृत्यु हो गयी और अनजाने में जया एकादशी का व्रत हो जाने से दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति भी मिल गयी। अब माल्यवान और पुष्पवती पहले से भी सुन्दर हो गयी और स्वर्ग लो में उन्हें स्थान मिल गया।


देवराज ने जब दोनों को देखा तो चकित रह गये और पिशाच योनि से मुक्ति कैसी मिली यह पूछा। माल्यवान के कहा यह भगवान विष्णु की जया एकादशी का प्रभाव है। हम इस एकादशी के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हुए हैं। इन्द्र इससे अति प्रसन्न हुए और कहा कि आप जगदीश्वर के भक्त हैं इसलिए आप अब से मेरे लिए आदरणीय है आप स्वर्ग में आनन्द पूर्वक विहार करें।


कथा सुनकार श्री कृष्ण ने यह बताया कि जया एकादशी के दिन जगपति जगदीश्वर भगवान विष्णु ही सर्वथा पूजनीय हैं। जो श्रद्धालु भक्त इस एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें दशमी तिथि से को एक समय आहार करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि आहार सात्विक हो। एकादशी के दिन श्री विष्णु का ध्यान करके संकल्प करें और फिर धूप, दीप, चंदन, फल, तिल, एवं पंचामृत से विष्णु की पूजा करे।



विधि




पूरे दिन व्रत रखें संभव हो तो रात्रि में भी व्रत रखकर जागरण करें। अगर रात्रि में व्रत संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उन्हें जनेऊ सुपारी देकर विदा करें फिर भोजन करें। इस प्रकार नीयम निष्ठा से व्रत रखने से व्यक्ति पिशाच योनि से मुक्त हो जाता है।[क्या ये तथ्य है या केवल एक राय है?]



इन्हें भी देखें



सन्दर्भ








Popular posts from this blog

Has the laser at Magurele, Romania reached a tenth of the Sun's power?Is the laser built in Măgurele, România, the most powerful in the world?Has man walked on the Moon?Did a nuclear blast devastate Port Chicago on July 17, 1944?Is this a true demonstration of using a stove to power a paper airplane?Does the Theradome Laser Helmet deliver around 7 J/cm2 to the head?What formula gives the solunar periods of the Solunar Theory?Can a strong solar storm knock out our power grids for months?Is half of the climate change in the past 110 years due to natural variation in the Sun's output?Does charging a phone use the same power as a washing machine?Is the laser built in Măgurele, România, the most powerful in the world?Do lipid droplets in our skin create a laser?

त्रोत्स्की जीवन परिचय बाहरी कड़ियाँ दिक्चालन सूचीत्रोत्सकी और भारत

नारायन दास पासी सन्दर्भ दिक्चालन सूचीबढ़ाने मेंसंउत्तर प्रदेश विधान सभा